हुकूमत में होगा,
ना सही, ना मिले,
वो बड़ा अफ़सर है तो क्या।
भूख से मरते हैं बच्चे,
खाली पेट उठाते हैं वज़न अपना,
इस बड़े शहर में, आबाद लंगर है तो क्या।
हम फिर भी बोएंगे बीज इसमें,
ये ज़मीन बंजर है तो क्या।
पानी ही सही, लड़ने के लिए,
इस देश की दाल में, कंकड़ है तो क्या।
अर्ज़ियों, धरनों, मोर्चों के बाद,
अब घेराव अंदर घुसकर होगा,
फिर वो बड़े नेता का दफ़्तर है तो क्या।
जब ज़रूरत होगी,
गरम लोहा भी उठाया जाएगा,
अब कोई किसान, मज़दूर, बुनकर है तो क्या।
करेंगे संघर्ष लगातार, जूझेंगे,
हड्डियाँ जवाब दें चाहे,
या फिर साँस चुक जाए तो क्या।
हम फिर भी बोएंगे बीज इसमें,
ये ज़मीन बंजर है तो क्या…
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