वो चाहते हैं मरम्मत हो,
हम चाहते हैं उखड़ जाए निज़ाम सारा।
वो चाहते हैं खामोशी रहे बरकरार,
हम चाहते हैं बोले आवाम सारा।
वो चाहते हैं इसी दिहाड़ी पर चले सब,
हम चाहते हैं शोषण मुक्त हो काम सारा।
वो समझौतों से लाद देने की फिराक़ में हैं,
हम विरोध में चाहते हैं चक्का जाम सारा।
वो दो-चार अल्फाज़ लिखकर खुश हैं,
हमारा तो बग़ावती है पैगाम सारा।
हम लड़ेंगे "उनकी" आख़िरी साँस तक,
अब चाहे जो हो अंजाम हमारा।
Comments
ab kar ke dikhayenge hum kaam hamara..
jis duniya ka dekha hai hamne sapna...
dekhenge ek din sab uska bhi nazara...
waqt lagta hai sapne ko haqeeqat bana ne mein...
lekin jo ban ke nikla to usey daba na payega fir koi dubara...
pata nahi tumhara padhte padhte it just came out :)
very appropriate and true expression of your thoughts..liked it..good going haan:)good reflection of commitment...we need to have such more creations..